बिहार यात्रा, भाग: 1

बिहार जितना चालाक और मक्कार दिखलाया-बतलाया जाता है, उतना है नहीं. ना ही उतना समृद्ध और गर्व करने लायक है, जितना बिहारी इसे मानते हैं.

मैं अब 24 अक्टूबर 2020 को दूसरी दफे बिहार आया हूँ. इससे पहले भी यहाँ आना हुआ था. एक साल पहले.
साल भर पहले जब मैं बिहार आया तो रास्ते भर एक-एक कर कई पक्की दीवारें दरकती रहीं, फिर बिहार पहुँचकर कुछ टूटने की तेज आवाज आई और देखा कि समूचा मकान ही ढह गया.
जब आप किसी नयी जगह जा रहे होते हैं. तब घर से निकलने और उस जगह तक पहुंचने के बीच आपका मन-मस्तिष्क एक खाका तैयार कर रहा होता है. एक मकान का खाका, जिसमें नयी जगह आप सुकून से रह सकें. यह सबकुछ उस जगह को जानने-समझने वालों के जरिये जाने-अनजाने में हो रहा होता है. अब इसे एक खास नाम दिया जाने लगा है, 'परसेप्शन'.
मेरे दिमाग में भी बिहार और बिहारियों को लेकर एक खास परसेप्शन था. ठीक औरों की तरह...
असल में मुझे कई गैर बिहारी दोस्तों ने बता रखा था कि बिहारी बहुत चालाक और मतलबी किस्म के होते हैं. चूंकि, मैंने ठीक यही बात कई लोगों से उनके अनुभवी किस्सों के साथ सुन रखी थी तो इसमें काफी मजबूती भी लगती थी.
इस सबके बावजूद बिहारी लोगों के लड़ने के साहस, जुनून और मेहनत करने के माद्दे को देखकर मेरे दिल में उनके लिए सम्मान जागा. इसके बाद यह मेरी अपनी चॉइस ही थी कि आज मेरे सबसे ज्यादा एक्टिव दोस्त बिहार के ही रहने वाले हैं. आज मेरा अपना अनुभव कहता है कि बिहारी बेहद जिंदादिल, हॉस्पिटैलिटी के मामले में मध्यप्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर और स्वादिष्ट खाना खाने वाले लोग होते हैं.
बिहार और बिहारियों को जानने का असल मौका तो पिछली बिहार यात्रा ने दिया. कुछ विषम परिस्थितियों ने अचानक मेरी बिहार यात्रा तय कर दी. मुझे पहली दफे दिल्ली से बिहार के फारबिसगंज तक आना था. मैं अपने बड़े भाई, मेंटोर, साथी के घर जा रहा था. यात्रा से पहले बिहार के दोस्तों ने बताया कि अपने लगेज पर पूरा ध्यान देना होगा. "हो सके तो किसी जंजीर के सहारे उसे बांध लेना है." ट्रेन के बेगूसराय स्टेशन पहुंचने पर अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी. "कोशिश करना कि उस समय लगेज अपनी सीट पर रख लेना."
मैं डरा सहमा सुबह-सुबह सीमांचल एक्सप्रेस में बैठ गया. वहाँ सामने की सीट पर एक बुजुर्ग दम्पति था. बातचीत शुरू हुयी. सामान्य परिचय के बाद हमने ब्रेकफास्ट साथ में लिया. अब मैं उनके डिनर और सपर का भी साथी था. उन्होंने अपनी ओर से पूरी तरह आश्वस्त किया कि मुझे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है. मैं आराम से अपनी नींद पूरी कर सकता हूँ. इस सबके बावजूद मेरे मन में समाया डर पूरी तरह से तो नहीं गया. लेकिन, "मैं नींद भर सो सका." स्टेशन पर उतरने के बाद उन्होंने साथ घर चलने को कहा. मेरे डेस्टिनेशन तक का रास्ता सुझाया तब अपने घर गए.
उससे कहीं अधिक प्यार, दुलार, लाड़ और दही-चूड़े के साथ सत्कार मिला बथनहा पहुंचकर. जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया है, यह यात्रा कुछ विषम परिस्थितियों ने अचानक तय कर दी थी. इसलिए बहुत लाजिमी है कि घर के हर कोने में उदासी थी. मेरे लिए नयी जगह पहुंचकर यह एक बड़ी चुनौती बन गयी. लेकिन, इसे संभाला भैया के दोस्तों ने. मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि कब वे सब मेरे दोस्त बन गए. सुबह के नाश्ते से लेकर, शाम के मोमोज और पान तक हम साथ ही होते थे. इनमें से ज्यादातर लोग अब मेरे साथ व्हाट्सअप, फेसबुक आदि पर जुड़े हुए हैं. यही वह जगह थी जहाँ बिहार और बिहारियों को लेकर परसेप्शन्स से बना मेरा मकान ढह गया.
मैंने बिहार के भोज आदि के बारे में पहले भी सुन रखा था. लेकिन, यह पहला वाकया था जब मैं इसका हिस्सा था. वह भी इतने करीब से... हलांकि यह मृतक भोज था. इसके बावजूद भी यह बहुत शानदार था. मैं इस स्तर का मृतक भोज पहली बार ही देख रहा था. मैंने इसमें बहुत कुछ सीखा. जिसमें सबसे अहम था, अदब के साथ सबको खाना परोसना.
इससे ठीक पहले एक ऐसा भी हिस्सा है. जो हम सबको परेशान कर सकता है. यहाँ आज भी पुण्यात्मा की शांति के लिए बड़े स्तर पर पूजा-पाठ होता है. बड़ा साजो सामान आता है. बर्तन, कपड़े, खाट, बिस्तर से लेकर हर कुछ नया. इसमें ज्यादातर परिवार एक बड़ी तंगी की ओर चले जाते हैं. यह खर्च कम से कम होने पर भी इतना अधिक है कि पहले से ही परेशान परिवार पर भारी प्रहार जैसा दिखता है. यह बिहार और यहाँ के समाज का वह क्रूर हिस्सा है, जो यहाँ के लोगों को सामान्य और बेहद सहज लगने लगा है. उन्हें लगता है कि यह उनके रीति-रिवाजों का वह जरूरी हिस्सा है, जिससे गुजरना ही होगा. यही वह जगह है, जहाँ अपनी संस्कृति और रिवाजों पर गर्व करता बिहार और बिहारी फीके साबित होते हैं.
अब जबकि मैं दूसरी बिहार आया हूँ. तब मौसम भले ही सर्दी की ओर रुख कर रहा है. लेकिन, यहाँ के माहौल में गर्माहट है. मौसम के विपरीत बढ़े तापमान का कारण है, विधानसभा चुनाव. कहते हैं, बिहार चुनाव अन्य राज्यों से एकदम अलहदा होते हैं. जिसका कारण बताया जाता है, यहाँ के आम जनमानस में भी राजनीति की समझ का घुला होना. माना जाता है कि यहाँ की बयार में भी राजनीति बहती है. सबकी समझ ऐसी कि हर गली-नुक्कड़ पर मजबूत आंकड़ों के साथ अपनी बात रखते युवा और वृद्ध मिल जाएंगे.
कुलमिलाकर यह सब मेरे लिए एकदम नया अनुभव रहने वाला है. मैं सीधे ग्राउंड पर भी जाने वाला हूं. ढेरों लोगों से मिलने वाला हूँ. मैंने जितना कुछ सुन रखा है, वह सब देखना भी चाहता हूँ. वह भी अपनी खुली आँखों के सामने...

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गौरव तिवारी

एक नाउम्मीद यायावर, लेखक